भाषा के महत्व
‘शिक्षा का उद्देश्य भाषा और संस्कृति से जोड़ना है’
शिक्षा का क्षेत्र काफी व्यापक है। यहां विभिन्न विषयों का संगम होता है। शिक्षा का रिश्ता मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, भाषाविज्ञान के साथ-साथ दर्शनशास्त्र से भी है। संगीत और नाट्य विधा भी शिक्षा क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा रही हैं।
इस क्षेत्र में काम करने की पहली शर्त है कि हम अपने दिल और दिमाग को खुला रखते हों। विपरीत परिस्थिति में भी अच्छे समाधान खोजने और उस पर अमल करने को तत्पर हों।
इस क्षेत्र में काम करने वाले अन्य लोगों के अनुभवों से लाभ उठाने और उनके साथ अपने अनुभवों को साझा करने के लिए सदैव तत्पर हों। ताकि शिक्षा क्षेत्र में बदलाव के लक्ष्य को साझा प्रयासों से हासिल किया जा सके। इस क्षेत्र में बदलाव धीमी प्रक्रिया से होता है और उसे ठहराव पाने में लंबा समय लगता है। जाहिर है ऐसे में हमारे धैर्य की परीक्षा भी होती है। तो हमें इस तरह की परीक्षाओं के लिए भी सदैव तैयार रहना चाहिए।
‘हम तो हिंदी वाले हैं’
इस क्षेत्र में हम यह कहकर किनारा नहीं कर सकते हैं कि हम तो हिंदी वाले हैं, हम अंग्रेजी में लिखा रिसर्च पेपर पढ़कर क्या करेंगे, या फिर हम तो अंग्रेजी वाले हैं हिंदी में लिखा कोई अनुभव पढ़कर क्या करेंगे? अगर हम इस क्षेत्र में काम करते हैं तो हमें भाषा को एक संसाधन के रूप में देखना चाहिए। ताकि हम विभिन्न क्षेत्रों से अलग-अलग भाषाओं में मिलने वाली जानकारी का लाभ उठा सकें।
अगर हम भारत में प्राथमिक शिक्षा की बात करें तो भाषा का सवाल एक बहुत बड़ा सवाल है। इसमें कई सवाल शामिल हैं जैसे बच्चों की पढ़ाई का माध्यम क्या हो, स्कूल में बच्चों को कौन सी भाषा बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाये, बच्चों के घर की भाषा को स्कूल में कितना स्पेश दिया जाये इत्यादि। ये सवाल हमारे सामने आते हैं क्योंकि स्कूलों की ज़मीनी वास्तविकताओं में ऐसी स्थितियां दिखाई देती हैं, जहां बच्चे के घर की भाषा अलग होती है और स्कूल में पढ़ाई की भाषा अलग होती है।
स्कूल की भाषा के साथ सामंजस्य
ऐसी स्थिति में बच्चों को तालमेल बैठाने के लिए जूझना पड़ता है। स्कूल में बच्चों के घर की भाषा की उपेक्षा कब तक जारी रहेगी? क्या बच्चों के घर की भाषा (होम लैंग्वेज) अपने पूरे सम्मान के साथ स्कूल में वापसी करेगी? या फिर बच्चे कोई ख़ास भाषा बोलने के कारण खुद के भीतर एक हीनभावना महसूस करते रहेंगे, जो उन्हें उनकी भाषा, संस्कृति और अपने लोगों के खिलाफ खड़ा कर देगी। या फिर वे स्कूल में उनको अपनी भाषा का बेझिझक इस्तेमाल करने का अवसर मिलेगा।
बिहार में राज्य सरकार ने एक फ़ैसला किया है जिसके तहत स्कूल में बच्चे उत्तर पुस्तिका में अपने घर की भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह से लिखने वाले किसी भी बच्चे के नंबर नहीं काटे जाएंगे। इस तरह का निर्णय बच्चों को अपनी भाषा के महत्व से रूबरू कराने और उससे जोड़ने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य तो जोड़ना है। चाहे मसला अपनी भाषा व संस्कृति से ही जुड़ने का क्यों न हो।
nice 😊😊😅
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteI think that you should Remove the bright 👀 paining colour
ReplyDeleteBerry
ReplyDeleteVery bad
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