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CUMULATIVE RECORDS (संचित अभिलेख)

Introduction:- संचित अभिलेख (Cumulative records)  निर्देशन प्रक्रिया में व्यक्ति या विद्यार्थी के अध्ययन के लिए अनिवार्य है। इस अभिलेख (Record) के अभाव में कोई भी अध्यापक या निर्देशन प्रदान करने वाला व्यक्ति किसी भी विद्यार्थी के व्यक्तित्व, उसके व्यवहारों तथा उसकी योग्यताओं से परिचित नहीं हो पाएगा। अतः संचित अभिलेख के बिना निर्देशन कार्यक्रम दिशा विहीन हो कर रह जाएगा।  MEANING OF CUMULATIVE RECORD CARD:-  'संचित अभिलेख' शब्द उन सभी प्रकार के अभिलेखों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें किसी विद्यार्थी के बारे में कई वर्षों तक लाभदायक और विश्वसनीय सूचना एकत्रित करने की व्यवस्था होती है ताकि स्कूल छोड़ते हुए उसकी शैक्षिक, व्यावसायिक और व्यक्तिक-सामाजिक प्रकृति की समस्याओं के समाधान में सहायता की जा सके। According to Allen:- “The humility record is a record of information concerned with appraisal (मूल्यांकन) of the individual pupil, usually, kept on a card and in one place." (“संचित अभिलेख सूचनाओं का वह अभिलेख है जिनका संबंध विद्यार्थी के मूल्यांकन से हो

Inclusive Education (समावेशी शिक्षा और व्यक्तिगत अंतर पर अध्ययन )

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समावेशी शिक्षा और व्यक्तिगत अंतर पर अध्ययन        जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत सरकार ने भारतीय संविधान आर.टी.ई अधिनियम 2009 के तहत 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए उनकी जाति, धर्म, लिंग, रंग, विकलांगता और भाषा के बावजूद पहले से ही नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया है। इस तरह, शिक्षा की मुख्यधारा में विभिन्‍न समुदायों अर्थात् अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, विकलांग बच्चों और लड़कियों सभी को शिक्षा दी गई। सभी के लिए शिक्षा समावेशी शिक्षा की अवधारणा पर कार्य करती है। समावेशी शिक्षा:        समावेशी शिक्षा का एक प्रकार है जहां सभी बच्‍चों को उनकी जाति, धर्म,  रंग, लिंग और विकलांगता के बावजूद शिक्षा प्रदान की जाती है। समावेशी शिक्षा सभी शिक्षार्थियों के लिए एक समान वातावरण प्रदान करती है।   भारत में समावेशी शिक्षा का इतिहास : जिला शिक्षा कार्यक्रम, 1985 राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 विकलांग हेतु एकीकृत शिक्षा, 1987 में शुरू हुई एक परियोजना सर्व शिक्षा अभियान, 2000 2020 तक सभी स्‍कूलों को ‘अक्षम मित्रतापूर्ण’ बनाना….(2005)

भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धित कानून

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भारतीय संविधान में शिक्षा का कानून भारतीय संविधान के प्रमुख शील्पकार बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के शताब्दि वर्ष में संविधान दिवस 26 नंवम्बर का महत्व बढ़ गया है। संविधान सभा ने 26 नंवम्बर 1949 को संविधान को स्वीकृत किया था जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुवा। संविधान बनाते समय इसके रचनाकरों के मन में यह विचार अवश्य ही रहा होगा कि भावी भारत का निर्माण उसकी कक्षाओं में होने वाला है। इसी कारण भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से शासन को निर्देशित करते हुए देश की शिक्षा व्यवस्था को  रूप देने का प्रयास किया है। जब हम 2015 का संविधान दिवस मना रहे हैं तब देश में नए स्वभाव की सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति लिखि जा रही है। देखना यह है कि नई सरकार को नई शिक्षा नीति देने के लिए किन संवैधानिक प्रावधानों का ध्यान रखना होगा? स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में भारत में ‘मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा’ के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद् के समक्ष प्रस्ताव रखा था, मगर वह पारित होकर कानून नहीं बन सका। स्वतन्त्र भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 द्व

भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान (Educational Provisions in Indian Constitution)

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भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान (Educational Provisions in Indian Constitution) Indian Constitution में education को नागरिको का मूल अधिकार माना गया है । और इन अधिकारो का उपयोग करने हेतु कुछ व्यवस्थाये ( Arrangement) दी गई है जो नीचे दी जा रही है।  1. शिक्षा (Education) को समवर्ती सूची Concurrent List में रखा गया है  - भारत गणराज्य के संविधान (Constitution) में तीन अलग अलग सूचियां है - (i) संघ सूची Union List  इस सूची में कानून बनाने का अधिकार केंद्रीय सरकार को है । (ii) राज्य या प्रान्तीय सूची State List इस सूची में कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारो को है । (iii) समवर्ती सूची Concurrent List इस सूची में कानून बनाने का अधिकार केंद्र एवम् राज्य सरकार दोनों को है । प्रारम्भ में शिक्षा Education प्रान्तीय या राज्य सूची State List में थी । 1976 में 42 वें संविधान संसोधन Constitution  revision  द्वारा शिक्षा education को समवर्ती सूची concurrent List में शामिल किया गया । तब से शिक्षा Education की व्यवस्था करना केंद्र और प्रांतीय सरकारो दोनों की

किशोरावस्था की परिभाषा

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किशोरावस्था की परिभाषा किशोरावस्था शब्द अंग्रजी भाषा के Adolescence शब्द का हिंदी पर्याय है। Adolescence शब्द का उद्भव लेटिन भाषा से माना गया है जिसका सामान्य अर्थ है बढ़ाना या विकसित होना। बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक के महत्वपूर्ण परिवर्तनों जैसे शारीरिक, मानसिक एवं अल्पबौधिक परिवर्तनों की अवस्था किशोरावस्था है। वस्तुतः किशोरावस्था यौवानारम्भ से परिपक्वता तक वृद्धि एवं विकास का काल है। 10 वर्ष की आयु से 19 वर्ष तक की आयु के इस काल में शारीरिक तथा भावनात्मक सरूप से अत्यधिक महवपूर्ण परिवर्तन आते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिक इसे 13 से 18 वर्ष के बीच की अवधि मानते हैं, जबकि कुछ की यह धारणा है कि यह अवस्था 24 वर्ष तक रहती है। लेकिन किशोरावस्था को निश्चित अवधि की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। यह अवधि तीव्र गति से होने वाले शारीरिक परिवर्तनों विशेषतया यौन विकास से प्रारंभ हो कर प्रजनन परिपक्वता तक की अवधि है। विश्व स्वस्था संगठन के अनुसार यह गौण यौन लक्षणों (यौवानारम्भ) के प्रकट होने से लेकर यौन एवं प्रजनन परिपक्वता की ओर अग्रसर होने का समय है जब व्यक्ति मानसिक रूप से प्रौढ़ता की ओर अग्रसर

अस्मिता का अर्थ (Meaning of Identity)

अस्मिता का अर्थ है- पहचान तथा भाषाई अस्मिता से तात्पर्य है- भाषा बोलने वालों की अपनी पहचान। ‘अस्मिता’ शब्द के संदर्भ में डॉ. नामवर सिंह ने कहा है कि- “हिंदी में ‘अस्मिता’ शब्द पहले नहीं था। 1947 से पहले की किताबों में मुझे तो नहीं मिला और संस्कृत में भी अस्मिता का यह अर्थ नहीं है।’अहंकार’ के अर्थ में आता है, जिसे दोष माना जाता है। हिंदी में ‘आईडेंटिटी’ का अनुवाद ‘अस्मिता’ किया गया और हिंदी में जहाँ तक  मेरी जानकारी है, पहली बार अज्ञेय ने ‘आईडेंटिटी’ के लिए अनुवाद ‘अस्मिता’ शब्द का प्रयोग हिंदी में कियाहै।” संसार में प्रत्येक व्यक्ति की अपनी निजी विशेषताएँ होती है। भाषा उनमें से एक है। यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति की भाषा दूसरे से अलग होती है। एक ही भाषा का प्रयोग करने वाले लोगों में उच्चारण, शब्द चयन एवं शैली के स्तर पर भेद पाए जाते हैं। हिंदी में कविता के संदर्भ में जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, तथा ‘अज्ञेय’ आदि की भाषा एक-दूसरे से भिन्न दिखाई पड़ती है। इसी प्रकार किसी वर्ग विशेष, समाज विशेष एवं राष्ट्र विशेष के लोगों की

बालक के विकास में घर, विद्यालय तथा समुदाय के योगदान (Contribution of Home School and community in the development of child)

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बालक के विकास में घर, विद्यालय तथा समुदाय के योगदान (Co ntribution of Home School and community in the development of child) स्किनर के अनुसार- " विकास प्रक्रियाओं की निरंतरता का सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति में कोई परिवर्तन आकस्मिक नहीं होता।"   सोरेनसन के अनुसार- " वृद्धि से आशय शरीर तथा शारीरिक अंगों में भार तथा आकार की दृष्टि से वृद्धि होना है, ऐसी वृद्धि जिसका मापन संभव हो।" विकास की प्रक्रिया पर कोई एक घटक प्रभाव नहीं डालता, कोई एक अभिकरण उत्तरदाई नहीं होता, अपितु अनेक कारक तथा अनेक अभिकरण बालक के विकास में योगदान देते हैं। घर, विद्यालय तथा समुदाय भी ऐसे ही अभिकरण है जिसका उपयोग बालक के विकास में मनोवैज्ञानिक रूप से होना चाहिए। बालक के विकास में घर का योगदान (Contribution of home in child development)        परिवार, बालक के विकास की प्रथम पाठशाला है। यह बालक में निहित योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास करता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य, बालक के विकास में योगदान देता है। यंग एवं मैक (Young & Mack) के अनुसार- " परिवार सबसे