भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धित कानून

भारतीय संविधान में शिक्षा का कानून

भारतीय संविधान के प्रमुख शील्पकार बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के शताब्दि वर्ष में संविधान दिवस 26 नंवम्बर का महत्व बढ़ गया है। संविधान सभा ने 26 नंवम्बर 1949 को संविधान को स्वीकृत किया था जो 26 जनवरी 1950 से लागू हुवा। संविधान बनाते समय इसके रचनाकरों के मन में यह विचार अवश्य ही रहा होगा कि भावी भारत का निर्माण उसकी कक्षाओं में होने वाला है। इसी कारण भारतीय संविधान के निर्माताओं ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से शासन को निर्देशित करते हुए देश की शिक्षा व्यवस्था को  रूप देने का प्रयास किया है। जब हम 2015 का संविधान दिवस मना रहे हैं तब देश में नए स्वभाव की सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति लिखि जा रही है। देखना यह है कि नई सरकार को नई शिक्षा नीति देने के लिए किन संवैधानिक प्रावधानों का ध्यान रखना होगा?


स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले ने 18 मार्च 1910 में भारत में ‘मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा’ के प्रावधान के लिए ब्रिटिश विधान परिषद् के समक्ष प्रस्ताव रखा था, मगर वह पारित होकर कानून नहीं बन सका। स्वतन्त्र भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 द्वारा जीवन तथा वैयक्तिक स्वतन्त्रता के संरक्षण का प्रावधान किया गया है शिक्षा व्यवस्था उसी का परिणाम है। अनुच्छेद 28 राजकीय शिक्षा संस्थानों में धर्म की शिक्षा को निषेध करने के साथ सहायता व मान्यता प्राप्त शिक्षा संस्थानों में दी जारही धार्मिक शिक्षा में अनुपस्थित रहने की स्वतन्त्रता विद्यार्थी को देता है। अनुच्छेद 29 भारत के सभी नागरिकों को भाषा, लिपि व संस्कृति को संरक्षित करने के साथ ही धर्म, मूलवंश, जाति या भाषा के किसी भेदभाव के बिना किसी शिक्षा संस्थान में भर्ती होने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 30 भाषा या धर्म के आधार पर अल्प संख्यकों को अपने शिक्षा संस्थान खोलने व उनका प्रबन्ध करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 41 में राज्य को उसकी आर्थिक सामर्थ्य व विकास की सीमाओं के भीतर रहते हुए शिक्षा पाने में नागरिकों का सहायता देने को कहता है। अनुच्छेद 45 में संविधान लागू होने के 10 वर्ष के भीतर 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने का निर्देश शासन को दिया था। अनुच्छेद 46 शासन को निर्देश लेता है कि वह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों तथा पिछड़े वर्ग की शिक्षा हेतु विशेष व्यवस्था करे। अनुच्छेद 337 अग्लो-इंडियन समुदाय की शिक्षा के लिए विशेष अनुदान देने को कहता है। अनुच्छेद 350 अ प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध को कहता है। अनुच्छेद 351 हिन्दी के विकास की बात करता है।
शिक्षा समवर्ती सूची में होने के कारण केन्द्र व राज्य दोनों का ही विषय है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा सहित सम्पूर्ण शिक्षा, राष्ट्रीय महत्व के कुछ विशिष्ट शिक्षा संस्थानों को छोड़ कर, राज्य का विषय है।

बड़ी देर से आया शिक्षा का अधिकार
                      संविधान लागू होने के बाद उसकेअनुच्छेदों को स्पष्ट करने या संविधान की मूल भावना के अनुरूप उन्हें और प्रभावी बनाने के लिए उनमें समय समय पर परिवर्तन किए गए। शिक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण संविधान संशोधन 1976, जब देश में आपातकाल लागू था, किया गया। 40 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा को सम्वर्ती सूची में डाला गया ताकि केन्द्र सरकार कानून बना कर सम्पूर्ण देश की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सके। 1986 की नीति में शिक्षा को सम्वर्ती सूची में डालने को एक दूरगामी कदम बताया गया और आशा प्रकट की गई कि इससे केन्द्र व राज्यों के बीच शिक्षा क्षेत्र में अच्छी भागीदारी की शुरुआत होगी।

उच्च व उच्चतम न्यायालयों के फैसलों का प्रभाव भी देश की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करते रहे हैँ। 1993 में उन्नीकृष्णन के वाद में उच्चतम न्यायालय का निर्णय आया कि 14 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पाना बच्चे का मौलिक अधिकार है। 

                             2002 में एनडीए सरकार ने 86 वां संशोधन कर संविधान में अनुच्छेद 21 क जोड़ा।  अनुच्छेद 21 क से देश में 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों हेतु अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने में शासन की जिम्मेदारी स्पष्ट होगई।

86 वें संविधान संशोधन को क्रियान्वित करने हेतु कानून का प्रारूप भी तत्कालीन एनडीए सरकार ने तैयार कर लिया मगर उसको पारित कराने से पूर्व ही वह सत्ता से बाहर हो गई। यूपीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के अन्तिम दिनों, 2009 में, शिक्षा का अधिकार कानून लागू कर सकी। स्पष्ट है कि संविधान की भावना को औपचारिक रूप से लागू करने में देश के नीति निर्धारकों ने 60 वर्ष लगा दिए।
देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए पाँच वर्ष से अधिक का समय होगया है। इससे कुछ प्रदेशों के प्रारम्भिक विद्यालयों के भौतिक स्वरूप में कुछ सुधार अवश्य हुआ है। भौतिक सुधारों का ध्येय शिक्षा में गुणात्मक सुधार करना है, मगर शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन देखने को नहीं मिला है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर को जाँच करने वाले गैर सरकारी संगठन प्रथम के निष्कर्ष तो प्राथमिक शिक्षा की गुणात्मकता में गिरावट बतला रहे हैं। शिक्षा की नींव ही कमजोर हो रही है तो भवन मजबूत कैसे होगा?

शिक्षा के अधिकार की कमियां

 उन्नीकृष्णन के प्रसंग में उच्चतम न्यायालय के निर्णय में 0 से 14 वर्ष के बच्चों की निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा की बात थी मगर शिक्षा के अधिकार कानून में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को ही सम्मिलित किया गया है। 0 से 6 वर्ष के बच्चों को छोड़ दिया गया है। इसी तरह पड़ौस के विद्यालय की उस अवधारणा को छोड़ दिया गया है जो कोठारी आयोग ने दी थी। 1986 की शिक्षा नीति में इसे लागू करने की बात कही गई है।
शिक्षा कानून का बनाना व उसे ईमानदारी से लागू करना दो अलग अलग बातें हैं। शिक्षा के अधिकार कानून के अनुरूप व्यवस्थाओं को करने हेतु जितना धन चाहिए उतना धन उपलब्ध नहीं कराया गया है। केन्द्र राज्यों से उम्मीदकर रहा है और राज्य केन्द्र से, शिक्षा दोनों के बीच निसहाय पड़ी है। कानून सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर की बात तो करता है मगर पंचतारा सुविधा से लेकर छतहीन विद्यालयों तक के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। ऐसे में समानता कैसे आएगी? शिक्षा के अधिकार कानून में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने की बात स्वीकार की गई है मगर देश में अंग्रेजी माध्यम के विद्यलयों की बाढ़ आरही है। मातृभाषा के विद्यालय अपने अस्थित्व को बचाने में असमर्थ होते जा रहे हैं।

अभी हाल ही में हुई केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार मण्डल की बैठक में कई राज्यों ने शिक्षा के अधिकार कानून में परिवर्तन की मांग की है। केन्द्र सरकार ने राज्यों को लिखित सुझाव देने को कहा हैं। इलाहबाद उच्च न्यायालय का निर्णय कि सरकारी अधिकारी अपने बच्चों को अनिवार्यतः सरकारी विद्यालयों में पढ़ाए अन्यथा आर्थिक दण्ड भुगते, देश की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

Comments

  1. If you're trying hard to lose pounds then you absolutely have to start following this totally brand new tailor-made keto meal plan diet.

    To design this keto diet, certified nutritionists, personal trainers, and chefs united to develop keto meal plans that are productive, decent, price-efficient, and satisfying.

    Since their first launch in January 2019, thousands of people have already completely transformed their body and health with the benefits a certified keto meal plan diet can offer.

    Speaking of benefits; in this link, you'll discover eight scientifically-tested ones given by the keto meal plan diet.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

UNDERSTANDING DISCIPLINE AND SUBJECT (विषय और अनुशासन की समझ)

बालक के विकास में घर, विद्यालय तथा समुदाय के योगदान (Contribution of Home School and community in the development of child)

भारतीय संविधान में शिक्षा सम्बन्धी प्रावधान (Educational Provisions in Indian Constitution)